Wednesday, 28 December 2016

मेरे बचपन का जहाज़





अब भी मैं समंदर किनारे जाता हूँ

अक्सर काफी वक़्त गीली रेत पर बिताता हूँ.. घर बनाता हूँ।
पर अब वो वहाँ पर नही है...और शायद लौटेगा भी नहीं...

सिर्फ उसकी एक हल्की सी याद है,इक मीठा एहसास है,भीनी सी खुशबू और साँसों की गर्माहट भी है

 यूं तो मैं जानता हूँ की मेरे बचपन का वो जहाज़ काफी आगे निकल चुका है..अब तो किनारे से दिखता भी नहीं है
 पर मुझे कोई शिकवा नहीं है.... क्योंकि उस जहाज़ पर मेरा सफर काफी खुशनुमा रहा है..
और फिर चलना और थमना तो सबकी आपनी विवशता है..
उस सफर की चंद तस्वीरे , गाहे बगाहे, आज भी वाबस्ता है

लेकिन...ये जो जहाज़ है,बड़ा ही दिलेर है
सबके लिए चलता है, सबको बिठाता है।
हिन्दू,मुसलमान, गरीब ,अमीर..हर कोई इसका लुत्फ़ उठता है।

आओ मैं अपने सफर से तुमको रूबरू करवाता हूँ।
अपने कुछ खट्टे-मीठे अनुभव सुनाता हूँ।


"" वक़्त की लेहेरों में गुम हो गया, इस गेहेरे समंदर में मेरा बचपन कही खो गया।

    वो बारीश में गड्ढों में कागज की नाव।
    वो सर्दी में गुड़, मूंगफली और अलाव।
    वो पतंग के पीछे दौड़ते मेरे नन्हे पाँव।
    लंगड़ी खेले भी अब तो ज़माना हो गया...

    वक़्त की लेहेरों में गुम हो गया, इस गेहेरे समंदर में मेरा बचपन कही खो गया।

    मेरे स्कूल के डिब्बे से अचार की एक महक आती थी।
    कक्षा के कोलाहल में भी मन को एक शांति मिल जाती थी।
    माँ के दिए चंद सिक्कों से दुनिया खरीदने का हौंसला रखते थे।
    गटागट और बेसन की बर्फी में सारे सौदे करते थे।

    पर अब मेरी साइकिल की चेन नहीं उतरती।
    सपने में भी परियां मुझसे नहीं मिलती।
    बाबा के जूते पोलिश किये तो ज़माना हो गया।

    वक़्त की लेहेरों में गुम हो गया, इस गेहेरे समंदर में मेरा बचपन कही खो गया। ""

आज का भौतिकवाद



रक्त है धुआँ धुआँ, लोभ ही प्रचंड है
प्रपंच ही सत्य है ,सत्य तो विखण्ड है

ना कोइ तरंग है, ना कोइ है प्रेम गीत
प्रेम से मधुर हुआ है आज सिक्कों का संगीत

ज़िन्दगी क़े मायनो का बदल रहा ये अर्थ है
रक्त से भी गहरा लाल नफरतों का रंग है

झूठ की महफ़िलों में नाचता ये स्वार्थ है
पथ महत्व हीन है,जीत ही यथार्थ है

दूसरों से होड़ की कैसी ये दौड़ है
न कोई है प्रेरणा, न कोई लक्ष्य है

दिल में इक दरार है, दोस्ती में खालीपन
दांव पर है प्रेम डोर, पर अडिग अभिमान है

स्वर्ण मृग की खोज में, हर तरफ बवाल है
मृग सा जो है दिख रह,असल में एक बाघ है

तिजोरियों की हुंडिया-गड्डियां बेमोल है
शव पे गिरे मोतीयों की कीमत अनमोल है

यही पे है स्वर्ग और है यही पे नर्क भी
इनका आखरी चुनाव करते कर्म-कांड है

ज़िन्दगी का सार है ये, संतो का है ये कथन
आदमी की शून्यता का, मौत स्वयं प्रमाण है



ज़िन्दगी की कश्ती में कुछ लोग सवार होते हैं और फिर उतर जाते है । । 
जो पल साथ बिता लिए बस वही साथ रह जाते हैं 
मिलना और बिछड़ना तो जीवन की रीत है 
दूर होकर भी पास रहना यही सच्ची प्रीत है 
के जाने किस मोड़ पर हम फिर टकरा जाए 
कब किस्मत किसे कहाँ ले आये 

यारों! .....सदा याद रखना हमे के हम भी ज़िन्दगी का हिस्सा थे कभी   
ज़िन्दगी के अनमोल पलों में हम भी शामिल थे कभी 
कुछ साँसे हमने साथ में ली थी 
कुछ उत्सव साथ में हमने थे मनाए 
रोये थे यार के दुःख में कभी 
और कभी साथ में थे मुस्कुराए 

इसी को ज़िन्दगी कहते है......
चलना है , उठना है और आगे बढ़ते जाना है 
ख़ुशी हो या गम सदा मुस्कुराना है  
जीवन के इस मेले में फिर मुलाक़ात होगी 
फिर कुछ खट्टी-मीठी बात होगी 
तब तक के लिए हंसो,खुश रहो और आगे बढ़ो......क्योंकि 
ज़िन्दगी की कश्ती में कुछ लोग सवार होते हैं और फिर उतर जाते है । । 






नीली-नीली सी एक सुबह ..
सब कुछ नीला नीला है..
बादल नीले ,पंछी नीले
अम्बर नीला, फूल नीले
नीला सा एक हवा का झोंका
मेरे कानों में कुछ कहता है
ओ रे मन बावले तू काहे घबराता है
हर रात के बाद एक सवेरा फिर से आता है । ।

माना के तू थक चूका है
वक़्त के थपेड़ो से पस्त हुआ है
लेकिन तेरे होंसलो का इम्तिहान अभी बाकि है
तेरे तरकश में तीर अब भी बाकि है
उठा धनुष और तीर चला
युद्ध लड़ के अपना मान बढ़ा
डर न तू, रुक न तू
हर ज़र्रा तुझसे ये कहता है
ओ रे मन बावले तू काहे घबराता है
हर रात के बाद एक सवेरा फिर से आता है । ।

चाहे कितना भी हो बोझ धरती उसे उठाती है
चाहे कोई भी मौसम हो कोयल हमेशा गाती है
हर लहर समंदर में गिरती है फिर उठती है
यही जीवन है गिरना और उठना तो इसकी रीति है
जो गिर के गिर गया वो तो गिर ही जाता है
जो गिर के फिर उठे वही सिकंदर कहलाता है
ओ रे मन बावले तू काहे घबराता है
हर रात के बाद एक सवेरा फिर से आता है । ।